हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के मौज़ा भीखपुर के बिचला इमामबाड़ा में हौज़ा ए इल्मिया आयतुल्लाह ख़ामनेई के तहत “दीन और ज़िंदगी” के शीर्षक से क्लासों की शुरुआत की गई, जिसमें नौजवानों और तलबा की बड़ी तादाद मौजूद थी। यह प्रोग्राम नमाज़े मग़रबैन के बाद तिलावत-ए-कुरआने करीम से शुरू हुआ, जिसका सवाब मरहूम सय्यद ज़ाकिर हुसैन इब्न सय्यद मुराद हुसैन और मरहूम उलमा-ए-भीखपुर के लिए इसाल किया गया।
प्रोग्राम के पहले मरहले में उलूम-ए-अस्री के विषय पर उस्ताद सय्यद इब्राहीम हुसैन रिज़वी ने बात की। 88 साल के बुज़ुर्ग उस्ताद ने नौजवानों के जोश ओ जज़्बे को सराहते हुए अंग्रेज़ी ज़बान सीखने की अहमियत पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि ज़बान इल्म का दरवाज़ा है और हर तालिब-ए-इल्म (छात्र) के पास बुनियादी किताबों का अध्ययन लाज़मी होना चाहिए ताकि वह अमली मैदान में कामयाब हो सके।
दिनी तालीम के सिलसिले में मौलाना सय्यद मुहम्मद रज़ा मारूफ़ी ने ख़िताब करते हुए कहा कि “दीन इंसान को सिर्फ़ अहकाम पर अमल करने वाला नहीं बनाता, बल्कि उसे अंतर्दृष्टि, शऊर और सही फैसले की सलाहियत अता करता है ताकि वह ख़ैर और शर की पहचान कर सके।” मौलाना ने कहा कि इस्लाम अमन, न्याय व इंसानियत का अलमबरदार है, जिसका मकसद इंसान को अंधी तक़लीद से निकालकर फ़हम व तदब्बुर की राह दिखाना है।
मौलाना सय्यद अली रिज़वी और मौलाना सय्यद शकील अहमद ने भी “दीन और ज़िंदगी” के मुख़्तलिफ़ पहलुओं पर रोशनी डालते हुए कहा कि दीन इंसान की फ़िक्री तरबियत के साथ-साथ उसकी समाजिक ज़िम्मेदारियों को भी उजागर करता है।
प्रोग्राम के आख़िरी हिस्से में बानी ए इदारा मौलाना सय्यद शमा मुहम्मद रिज़वी ने इल्म व तालीम की फ़ज़ीलत पर कुरआन व सुन्नत की रोशनी में गुफ़्तगू की। उन्होंने कहा कि इल्म इंसान को तअस्सुब, जहालत और फ़ितना व फ़साद से महफ़ूज़ रखता है। उनका कहना था कि आज की दुनिया में जहाँ ज़ुल्म व इस्तिकबार का दौर जारी है, वहीं ग़ज़्ज़ा की मुज़ाहमत पूरी इंसानियत के लिए हौसले और बेदारी की आलामत बन चुकी है।
आख़िर में मरहूमीन के लिए ताज़ियती कलमात पेश किए गए और दुआ के साथ प्रोग्राम इख़्तिताम पज़ीर हुआ।
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